हम तेरे शहर में.../ गुलामअली खाँ साहब
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हम तेरे शहर में आये है मुसाफिर की तरह,
सिर्फ इक बार मुलाकात का मौका दे दे.
मेरी मंजिल है कहाँ, मेरा ठिकाना है कहाँ,
सुबह तक तुज से बिछड़ कर मुजे जाना है कहाँ,
सोचने के लिये एक रात का मौका दे दे.
अपनी आँखों में छूपा रखे है जुगनू मैंने,
अपनी पलकों पे सजा रखे है आंसू मैंने,
मेरी आँखों को भी बरसात का मौका दे दे.
आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मुहोबत सून ले,
कपकपाते हुए होठों की शिकायत सून ले,
आज इज़हार-ऐ- ख़यालात का मौका दे दे.
भूलना था तो ये इकरार किया ही क्यूँ था,
बेवफा तू ने मुजे प्यार किया ही क्यूँ था,
सिर्फ दो-चार सवालात का मौका दे दे.
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